महज आरक्षण देने का प्रयास नहीं, कैसे 2024 में PM मोदी की वापसी तय कर सकती हैं महिला मतदाता
देश में महिला वोटवैंक पर फोकस केवल भाजपा तक ही सीमित नहीं है। कांग्रेस, जद (यू), द्रमुक और आम आदमी पार्टी (आप) सहित सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी सफलता के लिए महिलाओं को लुभाने की कोशिश की है।
संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने से जुड़ा 'नारीशक्ति वंदन विधेयक' आज लोकसभा में पेश हुआ। नए संसद भवन में पेश होने वाला यह पहला विधेयक है, जिसे महिला वोटबैंक को साधने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार महिला केंद्रित कई योजनाएं लेकर आई है। भाजपा की ओर से इस बात पर जोर डाला गया कि सरकार ने महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण पर कितना फोकस किया है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव लैंगिक-न्याय को भी दर्शाता है, जिसका मोदी सरकार 2024 के चुनावी कैंपेन के दौरान भरपूर इस्तेमाल कर सकती है। बीजेपी ने 2019 के चुनावों में तीन तलाक अध्यादेश को लेकर ऐसा ही किया था।
महिला वोटवैंक पर फोकस केवल भाजपा तक ही सीमित नहीं है। कांग्रेस, जद (यू), द्रमुक और आम आदमी पार्टी (आप) सहित सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी सफलता के लिए महिलाओं को लुभाने की कोशिश की है। पहले राजनीतिक दल विशिष्ट समुदाय या विशेष जाति पर अधिक जोर दिया करते थे। मगर, अब वे महिलाओं की चुनावी ताकत को समझ चुके हैं। आज महिलाओं का बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल करने का प्रयास दिखता है। महिलाएं हर एक निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाने लगी हैं। चुनावी प्रक्रिया में महिला मतदाताओं की भागीदारी बढ़ी है जिससे उनका प्रभाव और गहरा हुआ है।
पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक कर रहीं मतदान
2019 में पहली बार पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अधिक मताधिकार का इस्तेमाल किया। लोकसभा चुनाव 2019 में महिला मतदाताओं की भागीदारी 67.2% थी, जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत 67 रहा। अगर इसकी तुलना 1962 के लोकसभा चुनाव से करें तो हालात काफी बदल गए हैं। 1962 के इलेक्शन में 62 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं के मुकाबले महज 46.6 फीसदी महिलाओं ने ही वोट डाले थे। आंकड़े बताते हैं कि 2022 तक तीन वर्षों में महिला मतदाताओं की संख्या में 5.1% की वृद्धि हुई है। इसी अवधि में पुरुष मतदाताओं की संख्या में 3.6% की वृद्धि देखी गई। साफ है कि मतदान प्रक्रिया में महिलाएं अब पुरुषों से ज्यादा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं।
महिला मतदाताओं को लुभाने में जुटीं राज्य सरकारें
राजनीतिक दल इस बात को अच्छी तरह से समझ चुके हैं। यही कारण है कि उन्होंने महिला मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इनमें बैंक खातों में जमा भत्ते, रियायती खाना पकाने के ईंधन, मुफ्त बस यात्रा और शराब की खपत के खिलाफ कार्रवाई जैसे कदम अहम हैं। जिन पार्टियों ने महिला मतदाताओं का विश्वास जीतने की कोशिश की, उन्हें लाभ मिलता भी दिखा है। मिसाल के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार की ओर से 2016 में लागू की गई शराबबंदी को देखा जा सकता है। नीतीश के इस कदम को महिलाओं का अपार समर्थन मिला। यही वजह रही कि कई विपरीत परिस्थितियों के बावजूद 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की JDU ने 43 सीटें जीतीं। इस इलेक्शन में पुरुषों का मतदान प्रतिशत 54.68 रहा, जबकि महिलाओं के 59.69 प्रतिशत वोट पड़े।
महिलाओं पर फोकस करतीं केंद्र की कई योजनाएं
केवल राज्य सरकारें ही नहीं, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भी महिलाओं को सशक्त बनाने वाली योजनाओं पर जोर दिया है। 9.6 करोड़ महिलाओं के लिए रसोई गैस उज्ज्वला योजना, 27 करोड़ जन-धन खाते खोलना, विशेष सावधि जमा योजनाएं, महिला उद्यमियों को 27 करोड़ से अधिक मुद्रा ऋण का वितरण और मिशन पोषण सहित कई कदम मोदी सरकार ने उठाए हैं। महिला केंद्रित योजनाओं पर सरकार का फोकस पीएम मोदी और बीजेपी के लिए काम भी आया है। इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया पोस्ट-पोल के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2019 में महिलाओं ने पीएम मोदी को भारी समर्थन दिया। इसमें बताया गया कि 46 प्रतिशत महिलाओं ने BJP और उसके सहयोगियों को वोट दिया था। 27 प्रतिशत ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA को और अन्य 27 प्रतिशत ने दूसरे दलों को वोट दिया था।